JAGADGURU RAMANUJACHARYA SHRI VASUDEVACHARYA "VIDYABASKAR " SWAMIJI MAHARAJ , AYODHYAY(U.P)
जीवात्मा रूपिणी रोटी परमात्मा रूपी अग्नि मे यदि गुरु रूपी तवे पर विना सिके हुए पडेगी तो वो जल भी जाएगी और कच्ची भी रह जाएगी ,अगर तवे पर सिक जाने के बाद अग्नि के सम्पर्क मे जाएगी तो अच्छी तरह खिल कर अपने स्वरूप मे आ जाएगी
इसी लिए गुरुदेव के पुरुषकार की सर्वाधिक महत्ता है
जीवात्मा कन्यका प्रोक्ता
मन्त्रो माता गुरु:पिता
परमात्मा पति:प्रोक्त:
शरणागति-शास्त्रिभि:
कदाचित् इन्ही बातों को अपने मन मे समेटे हए कबीर दास जीने कहा होगा -
दुलहिनी गावहु मंगलाचार
हम (हमारे)घर आए हैं राजाराम भरतार
तन रति करि मा मन रति करिहौं पंच तत्व बराती
रामदेव मोरे पाहुने आये मै जोबन मदमाती
कबीर दास जी का यह भाव श्रीभाष्यकार रामानुजाचार्य स्वामीजी महाराज के " यमेवैष वृणुते तेन लभ्य: " के भाष्य मे वर्णित
प्रियतम एव हि वरणीयो भवति
अर्थात् प्रियतम ही वरण करने योग्य होता है
और जो जिस का अतिशय प्रिय होता है वही उस का प्रियतम होता है आदि श्रीभाष्य वर्णित विषयों का निर्वचन (विश्लेषण) सा लगता है।
ऐसे प्रियतम परमात्मा रूपी पति के हाथ मे (शरण) मे सौंपने वाला गुरु ही पिता है जो मन्त्र रूपिणी मा के साथ परमात्मा रुपी वर के हाथ मे जीवात्मा रूपिणी कन्या का दान करता है
यही कारण है कि आचार्याभिमान ही परमात्मप्राप्ति का चरम उपाय है। इन्हीं विषयों को अपने मन मे समेटे कलिपावनावतारगोस्वामीतुलसीदास जी महाराज ने अपनी सब से छोटी रचना हनुमान् चालीसा का और सब से बड़ी रचना रामचरित मानस का शुभारंभ गुरु की महिमा से ही किया। एक तरफ जहाँ हनुमान चालीसा
श्रीगुरुचरणसरोजरज निज मनमुकुर सुधारि
से प्रारंभ करते हैं तो वहीं दूसरीतरफ श्रीरामचरितमानस का शुभारंभ
बन्दउ गुरुपदपदुम परागा से कर रहे हैं
जय श्रीमन्नारायण !
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