पंचसंस्कर -
विशिष्टाद्वैत मत से श्री वैष्णव के लिए निम्नांकित संस्कार
शास्त्रानुमोदित है
ताप: पुण्ड्रं तथा नाम मन्त्रो यागश्र्व पञ्चमः |
अमी पञ्चैव संस्काराः परमैकान्तिनो मताः ||
पंचसंस्कर वो संस्कार है जो भगवन शरणागति ग्रहण करते हुए आचार्य अपने शिष्योंको ताप ,उर्ध्वपुण्ड्र, नाम ,अष्टाक्षरी मन्त्र तथा यज्ञ कार्य समपादन करते है |
(१) ताप : आचार्य दीक्षा देते समय चाँदी के बने हुए शँख-चक्र की मुद्राओ को अग्नि में तपा कर दोनों बहुमूल में क्रमशः अंकित करना चाहिए | इसे ही ताप संस्कार कहा जाता है |
(२) उर्ध्वपुण्ड्र : शरणागत ग्रहण करने वाले को ललाट पर पाशा तथा श्री चूर्ण से तिलक लगाया जाता है |
(३) नामकरण : दीक्षित व्यक्ति के नाम के आधाक्षर का आधार लेकर समबन्धी नाम रचना ही नामकरण संस्कार है
(४) मन्त्र – इस मे आचार्य शिष्य के दायें कान मे
“ॐ नमो नारायणाय “
यह अष्टाक्षरी मन्त्र है | इस के बाद द्वय मन्त्र दिया जाता है –
श्री मन्नारायण चरणौ शरणं प्रपधे ,
श्रीमते नारायणाय नमः |
अन्त मे चरम दिया जाता है -
सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं ब्रज |
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ||
(५) याग – इसके बाद पंच भू संस्कार से संस्कारित वेदी पर पुरुष सूक्त तथा श्री सूक्त से हवन कराया जाता है |
यह उप्र्युक्त्त पंच संस्कार कहे जाते है |
इसके बाद आचार्य अपने शिष्यों को उपदेश देते है की मॉस मदिरा इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिया , श्री रामानुजाचार्य स्वामीजी के उपदेशो का पूर्णता पालन करते हुए जीवन बिताना चाहिए |
अपने सम्प्रदाय के मत का पूर्णतः पालन करना चाहिये ,आचार्य ,पूर्वाचार्य के उपदेशो का पालन करना चाहिया | भगवान एवं भागवतो का सदेव आदर करना चाहिया |
नोट : शास्त्रानुसार सबको पंचसंस्कर का अधिकार नही है | आचार्य जिसको यह अधिकार प्राप्त है वही और किस्सी को दे संकता है |
जय श्रीमन्नारायण
पंडित.श्रीधर मिश्र
अध्यक्ष
श्री त्रिदण्डि देव वैदिक संस्थान
दिल्ली
अभिवादन। 🙏🏻
ReplyDeleteकृपया ये बताने का अनुग्रह करें कि श्रीचूर्ण कैसे बनता है। बड़ा उपकार होगा।