Tuesday, 3 September 2013

आहार का जीवन मे महत्तव

आहार का जीवन मे महत्तव

मानव जीवन मे भोजन का मुख्य स्थान है | आहार जीवन के उपस्तम्भ मे से एक है | प्राणियों के प्राण ,वर्ण ,जीवन ,सुख,पुष्टि ,बल ,पराक्रम आदि सभी भोजन पर अवलम्बित है |
आहार के कार्य :
भोजन के मुख्यतः चार कार्य है –
क्षतिपूरण, धातु बृंहण,उष्णता स्थापन ,ऊर्जा ,सम्षादन
भोजन के आवश्क नियम :
1.       ताज़ा भोजन करना चाहिए ताकि पाच्करस की उत्पत्ति हो ताकि पाचन भलीभांति हो सके |
2.       पहले किये हुए भोजन के पच जाने के बाद ही अगला भोजन करना चाहिए .कम से कम ५ घंटे के बाद | इस बीच केवल जल हे ले तो अच्छा रहता है | सुबह अल्पाहार ,दोपहर मे भोजन , शाम के समय कुछ पेय पदार्थ और रात्रि मे पुनः भोजन करना उचित होता है |
3.       भोजन खूब चबा के खाना चाहिए
4.       शांत चित कर भोजन करना चाहिए |
5.       व्यायाम के आधा घंटे बाद भोजन और भोजन के ३ घंटे बाद व्यायाम करना चाहिया |
अभक्ष्य पदार्थो  का परित्याग :
बुध्दि को लुप्त करने वाले मॉस ,मदिरा ,तम्बाकू,अफीम इत्यादि अभक्ष्य पदार्थो  है | मनुष्य मूलतः शाकाहारी है | हमारे शरीर की रचना मासाहारी जीवो से अलग है , मासाहार मे अधिक प्रोटीन होता है जो अधिक मात्रा मे लेने से यूरिक एसिड  तथा यूरिया मे परिवर्तित होकर गठिया,वात विकार ,हर्दय रोगों की उत्पति करता है |
मॉस खाने से जानवरों के संस्कार ,रोग इत्यादि भी आते है | यह केवल भ्रम है की मॉस खाने से सकती बढती है ....प्राणशक्ति के लिए शाकाहार का सेवन ही हितकारी है |
शुद्ध एवं सात्विक भोजन आदमी को सुखी,स्वास्थ और आनदमय जीवन प्रदान करता है |
विद्यार्थी को अल्प भोजन ही  करना चाहिया ताकि उनका विचार,आचार शुद्ध हो सके और वेह अपना जीवन सुधता के साथ बिता सके |

जय श्रीमन्नारायण !

पंडित ,श्रीधर मिश्र
अध्यक्ष
श्री त्रिदण्डि देव वैदिक संस्थान
दिल्ली

०९९५८७८७११४

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