जगद्गुरु कौन होता है -
विशिष्टाद्वैत सिध्दान्त के
प्रचारक विशिष्ठ वन्दनीय आचार्य महानुभावोंको जगद्गुरु इस प्रकार के अभिदान से
समादृत देखा जाता है
अत : विचारणीय है की जगद्गुरु कौन है ?
अत : विचारणीय है की जगद्गुरु कौन है ?
(स्वरुपम) जगद्गुरु का
लक्षण “ :- (श्री पांचरात्र आगम, जयाख्य संहिता १ पटल )
वैष्णवं ........... वैष्णव:
||५८|| से लेकर शास्त्रं .......”जगदगुरु:” ||६५|| तक जगतगुरु
के लक्षण बताया गया है इस की हिंदी
व्याख्या निचे कर रहा हु |
ज्ञान प्रदान करने वाले
गुरु को विष्णु भगवान के समान जानता है तथा मनसा वाचा – कर्मणा उनकी (गुरु) पूजा
करता है वह श्री वैष्णव शास्त्रज्ञ है | एक श्लोक या उसका चौथा हिस्सा ही जो उपदेश
करता है वह सदैव पूज्य है | जो भगवान नारायण के स्वरूप का वर्णन करता है उसके लिए
क्या कहना है ,शास्त्र का वक्ता ,२ शास्त्रानुसार भागवतो को मन मे धारण करने वाले
अर्थात् मन मे श्री भागवतो को पूज्य मानने वाले को ३ शास्त्र के वास्तविक रहस्य को
जानने वाले गुरु (आचार्य ) का पूजक (पूजा करने वाले ) को इस लोक तथा परलोक मे
अत्यधिक फल प्राप्त होता है तथा श्रीमन्नारायण ही परब्रह्म है इस ज्ञान को जनता है
|ज्ञान का साधन शास्त्र है अर्थात शास्त्र से ज्ञान प्राप्त होता है वह शास्त्र
गुरु के मुख मे निवास करता है |इसलिए परब्रह्म की प्राप्ति सदा ही गुरु के अधीन है
| इस हेतु (कारण) हे निश्चित ही उन्हें उत्तम गुरु कहा गया है | इस लिए भगवान
जगन्नाथ मनुष्य शरीर धारण कर , संसार सागर मे डूबते हुए लोगों को शास्त्ररुपी हाथो
से उद्दार करते है | अत: संसार भय से डरे हुए लोगों को आचार्य की भक्ति करने
चाहिया | शास्त्ररुपी अंजन से अज्ञान रूपी अंधकार को जो नष्ट कर देता है ऐसे
शास्त्र को जो पाप को नष्ट करनेवाला है ,पुण्यरूपी है , भोग और मोक्ष को देने वाला
,शान्तिप्रदान करानेवाला है उसका तथा महान अर्थ का जो उपदेशक है उसे “जगद्गुरु”
कहते है
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