आहार का जीवन मे महत्तव
मानव जीवन मे भोजन का मुख्य
स्थान है | आहार जीवन के उपस्तम्भ मे से एक है | प्राणियों के प्राण ,वर्ण ,जीवन ,सुख,पुष्टि
,बल ,पराक्रम आदि सभी भोजन पर अवलम्बित है |
आहार के कार्य :
भोजन के मुख्यतः चार कार्य
है –
क्षतिपूरण, धातु
बृंहण,उष्णता स्थापन ,ऊर्जा ,सम्षादन
भोजन के आवश्क नियम :
1.
ताज़ा भोजन करना चाहिए ताकि
पाच्करस की उत्पत्ति हो ताकि पाचन भलीभांति हो सके |
2.
पहले किये हुए भोजन के पच
जाने के बाद ही अगला भोजन करना चाहिए .कम से कम ५ घंटे के बाद | इस बीच केवल जल हे
ले तो अच्छा रहता है | सुबह अल्पाहार ,दोपहर मे भोजन , शाम के समय कुछ पेय पदार्थ
और रात्रि मे पुनः भोजन करना उचित होता है |
3.
भोजन खूब चबा के खाना चाहिए
4.
शांत चित कर भोजन करना
चाहिए |
5.
व्यायाम के आधा घंटे बाद
भोजन और भोजन के ३ घंटे बाद व्यायाम करना चाहिया |
अभक्ष्य पदार्थो का परित्याग :
बुध्दि को लुप्त करने वाले
मॉस ,मदिरा ,तम्बाकू,अफीम इत्यादि अभक्ष्य पदार्थो है | मनुष्य मूलतः शाकाहारी है | हमारे शरीर की
रचना मासाहारी जीवो से अलग है , मासाहार मे अधिक प्रोटीन होता है जो अधिक मात्रा
मे लेने से यूरिक एसिड तथा यूरिया मे परिवर्तित
होकर गठिया,वात विकार ,हर्दय रोगों की उत्पति करता है |
मॉस खाने से जानवरों के
संस्कार ,रोग इत्यादि भी आते है | यह केवल भ्रम है की मॉस खाने से सकती बढती है
....प्राणशक्ति के लिए शाकाहार का सेवन ही हितकारी है |
शुद्ध एवं सात्विक भोजन
आदमी को सुखी,स्वास्थ और आनदमय जीवन प्रदान करता है |
विद्यार्थी को अल्प भोजन
ही करना चाहिया ताकि उनका विचार,आचार
शुद्ध हो सके और वेह अपना जीवन सुधता के साथ बिता सके |
जय श्रीमन्नारायण !
पंडित ,श्रीधर मिश्र
अध्यक्ष
श्री त्रिदण्डि देव वैदिक
संस्थान
दिल्ली
०९९५८७८७११४