Monday 18 November 2013

shri vishwaksen

shri vishwalsen swaroopaam




सर्वेषा पार्षदानां प्रबलतरबलों योऽगर्गण्यो महात्मा यस्याजां नागवक्त्रप्रमुख सुरगण धारयन्त्याशु मूध्र्र्धा |विष्वक्सेनोरुतेजा हरीमुखगणान् मर्ध्ययन् सर्वदेशे लोकानां सौख्यकर्ता जयति कारुणया विघ्नहन्ता समन्तात ||

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वैकुण्ठ के समस्त पार्षद में अत्यंत प्रबल बलवान और अग्रगण जो अनंत तेजस्वी श्री विष्वक्सेन महात्मा है ,उनकी आज्ञा से गजानन प्रभृति समस्त देवगण शीघ्रता पूर्वक मस्तक झुकाकर पालन करते है | वे सेनापति सब देश में भगवद विमुख गण को मर्धन करते हुए और भक्त जनों के करुणा से चारो तरफ से विघ्न का नाश करते हुए तथा सुख प्रदान करते हुए विजय हो |
श्री विष्वक्सेन जी के विषय में लिखा है की 

अविदुरेथ देवस्य प्रागुदोच्यां वरासने | 
असिनं नीलमेघां शंखचक्रगदाधरम् || (आहिंक कारिका २६० )

भगवान् के निकट पूर्वोतर की और सुंदर आसन पर विराजमान भगवान् के सेनापति श्री विष्वक्सेन का ध्यान करे जिनकी कांती नील मेघ के समान है जो शंख चक्र और गदा के समान यानि वेत का दंड धारण किये है ||

पीतको शेय वसन चारूपद्म लेक्षणम 
उर्ध्वलक्षिततर्जन्या साज्ञया ससुरासुरान् ||(२६१)

पीताम्बर धारण किये है तथा सुंदर लाल कमल के समान जिनके नेत्र है ऊपर उठी हुई ऊँगली मुद्रा के संकेत से देवो तथा असुरो का नियमन करते है ||
और समस्त लोको का शासन करते है उनकी दक्षिण पार्श्व में उनकी प्रिया श्री सुत्रवती का ध्यान करे (२६२)

उनके चारो और स्थित १.गजानन २. जयत्सेन ३ हरीवक्त्र और ४.काल प्रकृति इन चारो चमूपतियों का ध्यान करे (२६३)

पौष्कर का प्रश्न है की :
यह अतुल्निय विर्शाली कौन है जिनकी उपस्थित होते ही त्रिलोकी को नष्ट कर सकने वाले विघ्न पल भर में दूर चले जाते है (इस्वर संहिता ८ /७६ )

इस का उतर है 


सम्राज्यें नियुक्तेस्मिन विघ्नानामच्युतें
पूजिते विघिना शश्वद्विष्ट् साधकोऽश्नुते ||

भगवान् श्रीमन्नारायण ने उनकी नियुक्ति की सारे विघ्नों पर नियंत्रण करने के लिए | इनकी विधिवद पूजन कर के साधक निश्चित ही अपने अविष्ट को प्राप्त कर सकता है यानि अपने कर्म को निर्विघन संपन्न कर सकता है ||
और इसी कराण हमारे श्री संप्रदाय में खास कर श्री विष्वक्सेन की पूजा से ही सारे कार्य सम्पादित होते है 

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जय श्रीमन्नारायण !

पंडित श्रीधर मिश्र 

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