मूल लेखक: श्री आन्ध्रपूर्ण कुलोत्पन्न उभय वेदान्त के प्रकाण्ड विद्वान् श्रीमदनन्ताचार्य स्वामीजी
सम्पादक: जगद्गुरु रामानुजाचार्य वेदान्त मार्तण्ड यतीन्द्र स्वामीजी श्री रामनारायणाचार्यजी स्वामीजी महाराज
विशेषत: इस ग्रंथमें
१ स्वाचार्य
२ वरवरमुनीन्द्राचार्य
३ श्रीमद्यतीन्द्र रामानुजाचार्य
४ श्री शठकोप स्वामीजी और
५ भगवान श्रीमन्नारायण
१ स्वाचार्य
२ वरवरमुनीन्द्राचार्य
३ श्रीमद्यतीन्द्र रामानुजाचार्य
४ श्री शठकोप स्वामीजी और
५ भगवान श्रीमन्नारायण
इन पांच रत्नोंका उल्लेख होनेके कारण यह ग्रंथ पञ्चरत्न प्रकाशक भी कहा जाता है।
भगवत् शरणागतिनिष्ठ प्रपन्न श्रीवैष्णवोंके लिये अमृत के समान पूर्वाचार्योंका सुमधुर चरित्र होने के कारण इसका नाम प्रपन्नामृत है।
प्रपन्नामृत - प्रथम अध्याय
भगवान वैकुण्ठनाथ के साथ आदिशेष का संवाद
वैकुण्ठ पुरी के बीच में ब्रह्मादि देवताओंसे भी अगम्य भगवान श्रीमन्नारायण का दिव्य धाम है।
जिसके मध्यमें सहस्र फणोंवाले श्री शेषजी के ऊपर श्रीदेवी भूदेवी एवं नीलादेवी से तथा नित्य-मुक्त पार्षदोंसे सुसेवित भगवान परवासुदेव सुखपूर्वक विश्राम कर रहे हैं।
एक समय भगवान को संसारियोंको वैकुण्ठ में लानेकी चिन्ता हुई।
श्रीशेषजी चिन्ता का कारण पूछे।
भगवान बोले की मैं जब भूमण्डल में अवतरित होता हुँ तो लोग मुझे ईश्वर नही मानतें।
भगवान आगे बोले की आपको छोडकर संसारियों की रक्षा करनेमें दूसरा कोई समर्थ नहीं।
अत: आप पृथ्वीपर अवतीर्ण होकर संसारियोंको सन्मार्गमें लगानेका काम करें।
श्री शेषजी बोले, "श्रीमान् यदि मुझे अपनी उभयविभूतियों (लीलाविभूति और नित्यविभूति) का अधिकार दें तो मैं इन संसारी जीवोंको किसी ना किसी तरह वैकुण्ठ अवश्य पहुँचाऊँगा।
भगवान ने श्री शेषजी को उभयविभूतियों का अधिकार सौंपा।
भगवान की आज्ञा पाकर श्री शेषजीने पृथ्वी पर अवतार लेनेका संकल्प किया।
प्रपन्नामृत - द्वितीय अध्याय
भगवद्रामानुजाचार्य का अवतार तोंडीर प्रदेश में सर्वसम्पन्न भूतपुरी नामक एक नगरी है। इसी नगरीमें सर्वगुणविभूषित हारीत कुलोद्भूत केशवाचार्य नामक भगवद् ध्यान निमग्न वैष्णवोत्तम ब्राह्मण निवास करते थे। उनकी धर्मपत्नी कीन्तिमती देवी थी। एक दिन भगवान पार्थसारथी नें उन्हे स्वप्न दिया की, "मैं ही अपने अंश से आपके पुत्र के रूप में अवतार लूँगा। चैत्र शुक्ल पंचमी को आर्द्रा नक्षत्रमें श्री रामानुज स्वामीजी का अवतार हुवा। रामानुज स्वामीजी के मामाजी श्री शैलपूर्ण स्वामीजी ने रामानुज को चक्रांतित करवाया। रामानुज स्वामीजी की दिव्य विशेषताओं को देखकर विद्वान ब्राह्मणोंने यह घोषित करदिया की यह शिशु श्री शेषजी का अवतार है।
प्रपन्नामृत - तृतीय अध्याय
पं. यादव प्रकाशाचार्य की सन्निधि में अध्ययन करते हुए श्री रामानुजाचार्य का राजकन्या को ब्रह्मराक्षस से मुक्ति दिलाना रामानुजाचार्य कांचीमें आकर समस्त शास्त्रोंका ज्ञान सम्पादन करने हेतु यादव प्रकाशाचार्य की सन्निधिमें प्रतिदिन अध्ययन करने लगें। रामानुजाचार्य की कुशाग्र बुद्धि को देखकर पं. यादव प्रकाशाचार्य ने अनुमान लगाया की यह शेष का अवतार है। उसी समय उस देश की राजकन्या को ब्रह्मराक्षस का आवेग होगया था। ब्रह्मराक्षस विमोचन के लिये बहुतसे मन्त्रज्ञ आये परन्तु असफल रहे। यादव प्रकाशाचार्य भी ब्रह्मराक्षस को हटानेमें असफल रहे। ब्रह्मराक्षस यादवप्रकाशाचार्य को बोला, "तुम्हारा पुरुषोत्तम छात्र रामानुजाचार्य यदि अपने पैरोंसे छूकर अपना चरणोदक मुझे दे दें तो मैं स्वेच्छया यहाँ से चला जाऊँगा।" फिर राजा की प्रार्थना से रामानुजाचार्य आये और राजकन्या के सिर पर चरण रखकर अपना चरणोदक देकर ब्रह्मराक्षस को चले जानो की आज्ञा दी। रामानुजाचार्य की दिव्य कृपा से सभी पापोंसे मुक्त होकर वह ब्रह्मराक्षस वैकुण्ठ लोक को चला गया। राजा ने हर्षोत्फुल्लित होकर रामानुजाचार्य का सुवर्णाभिषेक किया। स्वभाव से ही ईर्षालू यादव प्रकाश ने इसे अपना अपमान मानकर रामानुजाचार्य के साथ मानसिक बैर कर लिया। तभी रामानुजाचार्य की मौसी द्युतिमती के पुत्र गोविन्दाचार्य भी कांची आकर रामानुजाचार्य के साथ यादव प्रकाशाचार्य के यहाँ अध्ययन करनें लगें। अध्यापन करते हुये यादव प्रकाश ने श्रुतिका उपनिषत्सिद्धान्त विरुद्ध अर्थ किया, जिसे सुनकर रामानुजाचार्य ने आपत्ति दर्शाई। इससे कृद्ध होकर यादवप्रकाश ने रामानुजाचार्य से रुक्ष व्यवहार किया। इससे दु:खी होकर रामानुजाचार्य उठकर चले गये और अपने घरमें ही अध्ययन करने लगे।
प्रपन्नामृत - चतुर्थ अध्याय
पं. यादव प्रकाशाचार्य द्वारा श्रीरामानुजाचार्य का विन्ध्य बन में त्याग ▶ एक समय अपने सभी शिष्योंको बुलाकर यादवप्रकाश बोले, "मेरी सन्निधिमें पढकर मेरे श्रुत्यर्थोंको अशुद्ध बतलानेवाला रामानुज मेरा शत्रु बन बैठा है। यह मेरे मत को खण्डित करनेके लिये ही अवतरित हुआ है। इस रामानुज का मैं कैसे वध करुँ?" ▶ यादवप्रकाश नें शिष्योंके साथ मिलकर रामानुजाचार्य के वध की योजना बनायी। ▶ तदनन्तर छोडकर चले गये रामानुजाचार्य को बुलाकर झूठी मधुर वाणी बोलकर पुन: अध्ययन के लिये बुलाया। ▶ एक दिन छली यादवप्रकाश ने रामानुजाचार्य को माघ मास निमित्त गंगाजी में स्नान के लिये प्रयाग चलनेके लिये आमन्त्रित किया। ▶ माता कांतिमति से आज्ञा लेकर रामानुजाचार्य यादवप्रकाश के साथ चल दिये। ▶ रामानुजाचार्य के भाई गोविन्दाचार्य को यादवप्रकाश की योजना का पता था, अत: रामानुजाचार्य की रक्षा करने हेतु वे भी साथमें चल दिये। ▶ एक दिन हिंसक पशुओंके जंगलमें रामानुजाचार्य को छोडकर यादवप्रकाश आगे निकल गये। ▶ गोविन्दाचार्य ने रामानुजाचार्य को बताया, "भैय्या! गंगा स्नान के बहाने आपको मारनेके लिये लेके जा रहे हैं, अत: आप को रुक जाना चाहिये। ▶ रामानुजाचार्य वहाँसे यादवप्रकाश का साथ छोडकर निकलगये। ▶ बहोत ढूँढनेपर भी रामानुज नही मिले, अत: उन्हे हिंसक पशुओंनें मारदिया होगा यह समझकर भीतरसे प्रसन्न पर उपरसे दु:ख का स्वांग रचाते हुये यादवप्रकाश उस रात्रि शांतिपुर्वक सोया।